Sunday, June 13, 2010

तेरी यादें

कलि-अवली में अलि-अलकों के गुंजन सी तेरी यादें
कभी पतझड़ सी लगती हैं, कभी मधुबन तेरी यादें
हृदय में चल रहा मंथन तेरी यादों का है प्रियतम
कभी साँपों सी डसती हैं, कभी चन्दन तेरी यादें


मैं कोई तान वीणा की जो छेड़ूँ साज़ में तुम हो
कोई जब गीत गाउँ हो व्यथित आवाज़ में तुम हो
तुम्हारे बिन न होती कल्पना मुझसे है जीवन की 

मेरा अंजाम ही तुम हो मेरी आग़ाज़ भी तुम हो 

गगन में व्योम-गंगा सी हैं व्यष्टि में तेरी यादें
तेरी स्मृतियाँ मेरी सृष्टि हैं सृष्टि में तेरी यादें
श्रवण-सीमा जहाँ तक है वहां तक गूंजती है तू
जहाँ तक देखते दृग हैं, है दृष्टि में तेरी यादें


मैं लिखना चाहता हूँ गीत मन को दीप्त कर दे जो
नए जीवन-तरंगों से मुझे अभिषिक्त करदे जो
हृदय के वेदना की औषधि मैं ढूंढ़ता निशिदिन
विरहमयी याद से तेरी हृदय
को रिक्त कर दे जो

Friday, June 11, 2010

हृदय का पीर

हृदय का पीर लेकर के तड़पता हूँ मैं बेचारा
नयन भर नीर लेकर के भटकता हूँ मैं आवारा
फलक ने छोड़ दी मुझको जमी अपना नहीं पाई
अधर में अंत है मेरा मैं एक टूटा हुआ तारा

यहाँ हर रोज़ गिरती गाज है उल्फत की ख्वाहिश पे
कई परवाने जल जाते है शम्मा की नुमाइश पे
मुझे सब लोग कहे हैं तुम्हे रोना नहीं आता
हजारों जख्म सीने में जो रोऊ तो मैं किस किस पे

तू कितनी बेवफा है ये मुझे सब साफ दिखता है
तेरी झूठी मोहब्बत में ज़फ़ा का आग दिखता है
तू अपने हुस्न की रौनक से डर इतना भी मत इतरा
कि जितना चाँद रौशन हो तो उतना दाग दिखता है

तेरी आँखों में मधुशाला मगर प्याला ज़हर का है
ये भोलापन तेरे चेहरे का बस धोखा नज़र का है
ज़माना खामखा इसको तेरी मेहंदी समझता है
तेरे हाथों में रंग लाया लहू मेरे जिगर का है



Wednesday, June 9, 2010

अवसान

मैं अवसान दिवस का प्रियतम,अन्धकार बन जाऊंगा
स्वर्णिम प्राची की रश्मि का, उपहार कहाँ दे पाउँगा
मानसरोवरी राजहंस तू, मैं तपते तट की सिकता
भाग्य नहीं मोती बनकर,गलहार तेरा बन पाउँगा