हृदय का पीर लेकर के तड़पता हूँ मैं बेचारा
नयन भर नीर लेकर के भटकता हूँ मैं आवारा
फलक ने छोड़ दी मुझको जमी अपना नहीं पाई
अधर में अंत है मेरा मैं एक टूटा हुआ तारा
यहाँ हर रोज़ गिरती गाज है उल्फत की ख्वाहिश पे
कई परवाने जल जाते है शम्मा की नुमाइश पे
मुझे सब लोग कहे हैं तुम्हे रोना नहीं आता
हजारों जख्म सीने में जो रोऊ तो मैं किस किस पे
तू कितनी बेवफा है ये मुझे सब साफ दिखता है
तेरी झूठी मोहब्बत में ज़फ़ा का आग दिखता है
तू अपने हुस्न की रौनक से डर इतना भी मत इतरा
कि जितना चाँद रौशन हो तो उतना दाग दिखता है
तेरी आँखों में मधुशाला मगर प्याला ज़हर का है
ये भोलापन तेरे चेहरे का बस धोखा नज़र का है
ज़माना खामखा इसको तेरी मेहंदी समझता है
तेरे हाथों में रंग लाया लहू मेरे जिगर का है
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2 comments:
Bahut mast hai sirji..........
mazaa aa gya sir ji.... aap aur b likhiye na..
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