प्राण भी उत्सर्ग करदे जो सदा हंसते हुए और त्याग दे सर्वस्व अपना राष्ट्र के उत्थान में
सौमित्र सा है वो तपश्वी प्रहरी है इस राष्ट्र का बस राष्ट्रहित रहता है जो तत्पर सदा संधान में
पुण्य सलिला जाह्नवी की शुभ्र धारा जैसी जिसके उर में बहती भावना बस राष्ट्र के सम्मान में
मैं यहाँ हूँ फिर भी मुझको है सदा अभिमान यह कि मित्र मेरा है खड़ा हिमश्रिंग के चट्टान में ....
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