आद्यशक्ति स्वरूपा अनंत प्रेम की सनातन स्रोत, ममता,प्रेम,वात्सल्य,उत्सर्ग इन्ही सभी उदात्त भावनाओं से विभूषित अपने जीवन के हर क्षेत्र में जो केवल सृजन ही करना जानती है, वो है नारी
कभी माता कभी वनिता कभी दुहिता होती है नारी
सर्जन स्वरूपा होती है किन्तु सदा बेवश बेचारी
चीरबंदी बनाया गया यहाँ चीरवंदनीया नारी को
अर्थहीन मर्यादाओं ने बांधा जननी प्यारी को
माता बन ममता के रस से सिंचित करती जीवन को
बन वनिता निज मधुर प्रेम से करती तरंगित यौवन को
पिता पति दोनों के कुल के हित में बन जाती दुहिता
फिर भी जीवन के महाकाव्य में नारी बस करुणा रस कविता
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