Thursday, December 4, 2008

-:विश्व-अस्तित्व:-

ज्योतिष्पथ के अंतस्तल में , मन्दाकिनी के वक्षस्थल में
नक्षत्रों की अगम गति में , सविता की तेजोमयी द्युति में
दुर्गम गिरी के तुंग श्रृंग में ,अस्ताचल के अरुण रंग में
सागर की उत्ताल तरंगों में , हिमगिरी के धवल अंगों में
अस्तित्व तुम्हारा दिखता है,
हे जगज्योती दर्शनाधार, व्यक्तित्व तुम्हारा दिखता है

सुगंध गर्विता कुसुम कुञ्ज में,मधुकर के सुमधुर गूंज में
हरीतिमा के हरित तेज में ,प्रियतमा के प्रणयसेज में
सरिता के अविरल कल-कल में , सरसुशोभिता अरुनोत्पल में
मिलन के चरम उन्माद में, विरहाकुल मन के विषाद में
अस्तित्व तुम्हारा दिखता है,
हे विराट हे अनंत सत्ता व्यक्तित्व तुम्हारा दिखता है
वर्षा ऋतू के जलदनाद में , आर्द्रहर्षित दर्दुर्निनाद में
शिशिर के कोमल तुषार में,हेमंत के शीतल बयार में
मधुरितु के सुललित प्रसून में,कोकिल की शुचि रुचिकर धुन में
शस्य श्यामला मेदिनी के अतिविस्तृत अभिराम दृश्य में
अति उतंग अर्णव तरंग के ,शीर्ष-गर्त के महानृत्य में
अस्तित्व तुम्हारा दिखता है,
हे कलातीत कालातीत सत्ता , व्यक्तित्व तुम्हारा दिखता है
संध्या की स्निग्ध तमिस्रा में,अर्धरात्रि की निद्रा में
दर्शन की जटिल समस्या में , मुनियों की कठिन तपस्या में
कर्मवीर के बाहुबल में , योद्धाओं के रणकौशल में
पतितापी के क्लिन्न नेत्र में, क्षमाशील के हृदयक्षेत्र में
योगियों की समाधि में,रोगी की भीषण व्याधि में
भिक्षु की अंतहीन आशा में , मानव मन की अभिलाषा में
अस्तित्व तुम्हारा दिखता है,
द्वैतहीन हे अद्वैत सत्ता व्यक्तित्व तुम्हारा दिखता है
यत्र -तत्र -सर्वत्र तुम्ही हो , वेद तुम्ही हो मंत्र तुम्ही हो
व्यष्टि तुम्ही हो तुम्ही समष्टि , स्रष्टा तुम हो तुम्ही हो श्रृष्टि
तुम्ही समस्या समाधान तुम,साध्य तुम्ही हो उपादान तुम
सुरा में तुम हो सोम में तुम हो , तुम्ही धरा में व्योम में तुम हो
ईश्वर तुम हो रब भी तुम हो ,धर्म तुम्ही मज़हब भी तुम हो
तुम्ही कुरान गीता में तुम हो , आयतें तुम्हारी ऋचा में तुम हो
तुम्ही आदि में अंत में तुम हो, हर मत में हर पंथ में तुम हो
कवि तुम्ही कविता भी तुम हो,कृष्ण तुम्ही गीता भी तुम हो
तुम ही तुम हो मुझमे तुम हो,हर इसमें हर उसमे तुम हो
तुम्ही पुष्प हो गंध तुम्ही हो, द्वन्दातीत हो द्वंद तुम्ही हो

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